FAQ'S

Guru is congregation of all the divine power. It is said Guru Brahma Guru Vishnu Guru Devo Maheshwara it means guru is Brahma Vishnu and Shiva. It is guru who educates the ignorant disciples and makes them realise God. Without guru it is not possible to dwell or go through in the forest of ancient scriptures, one will end up in havoc experimenting the ancient scriptures without guidance of Guru. A true guru will lead you in path to salvation.

गुरु सभी दैवीय शक्तियों का समूह है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वर इसका मतलब है कि गुरु ब्रह्मा विष्णु और शिव एक ही हैं। गुरु ही अज्ञानी शिष्यों को शिक्षा देते हैं और उन्हें ईश्वर का साक्षात्कार कराते हैं। गुरु के बिना प्राचीन शास्त्रों के जंगल में रहना या जाना संभव नहीं है, गुरु के मार्गदर्शन के बिना प्राचीन शास्त्रों के प्रयोग में विनाश हो जाएगा। एक सच्चा गुरु आपको मोक्ष के मार्ग पर ले जाएगा।

Mantra is that rhythmic sound which when initiated from guru and practiced under his guidance will connect you to the divine power or God. It is said “Devadhinam Jagat Sarve Mantradhinam cha devatha”. It means devatha/God controls the entire universe and God is easily accessible through mantras. it is also said “Japat siddhim japat siddhim japat siddhirna samshayah meaning continuous recitation of mantra initiated by guru is sure to result success.

मंत्र वह लयबद्ध ध्वनि है जो गुरु से दीक्षित और उनके मार्गदर्शन में अभ्यास करने पर आपको दिव्य शक्ति या ईश्वर से जोड़ेगी। इसे “देवाधिनं जगत सर्वे मन्त्रधिना च देवता” कहा जाता है। इसका मतलब है कि देवता/भगवान पूरे ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं और मंत्रों के माध्यम से भगवान को आसानी से पहुँचा जा सकता है। यह भी कहा जाता है कि “जपत् सिद्धिम जपत् सिद्धिम जपत् सिद्धिर्ना संशायः” अर्थात गुरु द्वारा बताए गए मंत्र का निरंतर जप/पाठ करने से सफलता अवश्य मिलती है।

Our Ancient Scriptures have provided solutions to every problem of life, it may be wealth, marriage, children, health, etc and the path to every righteous ambition. However, they are so vast and intense that one cannot explore the practical application of these scriptures on their own. Only a true and competent Guru can guide the disciple and initiate the mantra through the medium of Deeksha, which when practiced as advised by guru will result in success. Any mantra that is not initiated by a true and competent Guru will not result in success and would make the efforts of a sadhak futile.

मंत्र की दीक्षा सशक्त गुरु से ही क्यों करनी चाहिए  ?

हमारे प्राचीन शास्त्रों ने जीवन की हर समस्या का समाधान प्रदान किया है, चाहे वह धन, विवाह, बच्चे, स्वास्थ्य आदि हो और हर धार्मिक महत्वाकांक्षा का मार्ग हो, हालांकि वे इतने विशाल और गहन हैं कि कोई भी इन शास्त्रों के व्यावहारिक अनुप्रयोग का पता नहीं लगा सकता है। केवल एक सच्चे और सशक्त गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन कर सकता है और दीक्षा के माध्यम से मंत्र की शुरुआत कर सकता है, जिसका अभ्यास गुरु की सलाह के अनुसार करने पर सफलता मिलेगी। कोई भी मंत्र जो सच्चे और सशक्त गुरु द्वारा दीक्षित नहीं होता है, उसका परिणाम सफलता प्रदायक नहीं होता है और साधक के प्रयत्नों को व्यर्थ करता है |

It is said in our Ancient Scriptures “Ato Mantre Gurau Deve Na Bhedhascha Prajayate” meaning Devata/God, Guru and Mantra are not different from each other.

हमारे प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है “अतो मन्त्रे गुरौ देवे न भेदश्च प्रजायते” अर्थात देवता/भगवान, गुरु और मंत्र एक दूसरे से अलग नहीं हैं।

MANTRAS INITIATED BY A TRUE AND COMPETENT GURU THROUGH DEEKSHA WILL HELP YOU TO SHAPE YOUR OWN LUCK AND DESTINY.

दीक्षा के माध्यम से गुरु द्वारा शुरू किए गए मंत्र आपको अपना भाग्य और नियति बनाने में मद्दत करेंगे।

आज इस विषय मे चर्चा करते है।
माधवाचार्य गायत्री के घोर उपासक थे,
वृंदावन मे उन्होंने तेरह वर्ष तक गायत्री के समस्त अनुष्ठान विधिपूर्वक किये।
लेकिन उन्हे
इससे न भौतिक न आध्यायत्मिकता लाभ दिखा।
वो निराश हो कर काशी गये
वहां उन्हें एक आवधूत मिला जिसने उन्हें एक वर्ष तक काल भैरव की उपासना करने को कहा।
उन्होंने एक वर्ष से अधिक ही कालभैरव की आराधना की
एक दिन उन्होंने आवाज सुनी
मै प्रस्ंन्न हूं वरदान मांगो
उन्हें लगा कि ये उनका भ्रम हे क्योंकि सिर्फ आवाज सुनायी दे रही थी कोइ दिखाई नहीं दे रहा था।
उन्होंने सुना अनसुना कर दिया
लेकिन वही आवाज फिर से उन्हें तीन बार सुनायी दी।
तब माधवाचार्य जी ने कहा
आप सामने आ कर अपना परिचय दे मै अभी काल भैरव की उपासना मे व्यस्त हूं।
सामने से आवाज आयी
तूं जिसकी उपासना कर रहा है वो मै ही काल भैरव हूँ
माधवाचार्य जी ने कहा
तो फिर सामने क्यो नहीं आते?
काल भैरव जी ने कहा
माधवा
तुमने तेरह साल तक जिन गायत्री मंत्रों का अखंड जाप किया है
उसका तेज तुम्हारे सर्वत्र चारो ओर व्याप्त है।
मनुष्य रूप मै उसे मै सहन नहीं कर सकता, इसीलिए सामने नहीं आ सकता हूँ।
माध्वाचार्य ने कहा
जब आप उस तेज का सामना नहीं कर सकते है तब आप मेरे किसी काम के नहीं
आप वापस जा सकते है।
लेकिन मै तुम्हारा समाधान किये बिना नहीं जा सकता हूं।
तब फिर ये बताइये कि मेने पिछले तेरह वर्षों से किया गायत्री अनुष्ठान मुझे क्यों नहीं फला?
काल भैरव ने कहा
वो अनुष्ठान निष्फल नहीं हुए है
उससे तुम्हारे जन्म जन्मांतरो के पाप नष्ट हुए है।
तो अब मै क्या करू
फिर से वृंदावन जा कर ओर एक वर्ष गायत्री का अनुष्ठान कर
इस से तेरे इस जन्म के भी पाप नष्ट हो जायेंगे फिर गायत्री मां प्रसन्न होगी।
आप या गायत्री कहां होते है हम यहीं रहते है पर अलग रुपों मे ये मंत्र जप जाप और कर्म कांड तुम्हें हमे देखने की शक्ति, सिध्दि देते है जिन्हें तुम साक्षात्कार कहते हो।
माधवाचार्य वृंदावन लौट आये
अनुष्ठान शुरु किया
एक दिन बृह्म मूहुर्त मे अनुष्ठान मे बैठने ही वाले थे कि उन्होंने आवाज सुनी
मै आ गयी हूँ माधव
वरदान मांगो
मां
माधवाचार्य फूटफूटकर रोने लगे।
मां
पहले बहुत लालसा थी कि वरदान मांगू लेकिन
अब् कुछ मांगने की इच्छा रही नही ,मां
आप जो मिल गयी हो
माधव
तुम्हें मांगना तो पडेगा ही
मां ये देह,शरीर भले ही नष्ट हो जाये लेकिन इस शरीर से की गयी भक्ति अमर रहे।
इस भक्ति की आप सदैव साक्षी रहो।
यही वरदान दो
तथास्तु
आगे तीन वर्षों मै माधवाचार्य जी नै
माधवनियम
नाम का आलौकिक ग्रंथ लिखा
याद रखिये
आपके द्वारा शुरू किये गये मंत्र जाप पहले दिन से ही काम करना शुरू कर देतै है।
लेकिन सबसे पहले प्रारब्ध के पापों को नष्ट करते है।
देवताओं की शक्ति इन्हीं पापों को नष्ट करने मे खर्च हो जाती है।
और जैसे ही ये पाप नष्ट होते है
आपको एक आलौकिक तेज
एक आध्यायात्मिक शक्ति और
सिध्दि प्राप्त होने लगती है।।
गुरु कृपा केवलं

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